YAGYA VEDI (यज्ञवेदी-49)
February 1, 2022HANUMAT KUND (हनुमत कुण्ड-47)
February 1, 2022
पता- यह स्थान श्री रघुनाथदास छावनी के उत्तर द्वार स्थित है।
शिलालेख- शिलालेख कुण्ड के तट पर लगा हुआ है।
किवदंती- अयोध्या महात्यम के अनुसार अयोध्या में एक महान एवं प्रतापी सम्राट श्रीरघु अयोध्या के राजा थे। चतुर्दिक विजय की प्राप्ति के बाद श्री वशिष्ठ जी की आज्ञा से वामदेव,कश्यप,गालव,भारद्वाज आदि महर्षियों को आमंत्रित कर उनके आज्ञा अनुसार विश्वजीत यज्ञ किया। यज्ञ सम्पन होने के बाद महाराज रघु ने सर्वस्व दान कर दिया, केवल छत्र एवं चमर ही राज-चिन्ह के रूप में अवशेष रह गए। इसी अवसर पर श्री वरतन्तु जी के शिष्य श्री कौत्स जी अयोध्या पधारे एवं उन्होंने महाराज रघु से अपने गुरु को गुरुदक्षिणा देने के लिए धन का आग्रह किया। महाराज रघु को अपने खाली कोष की पूर्ण जानकारी थी। उन्होंने मंत्रियों को बुलवाया और आदेश किया कि कुबेर पर चढ़ाई की जाए और वंहा से धन ला कर कौत्स जी को दिया जाए। जब इस बात की जानकारी कुबेर को हुई तो उन्होंने महाराज रघु के आने के पूर्व ही इसी स्थान पर स्वर्ण की वर्षा कर दी। महाराज रघु ने यह सारा धन कौत्स जी को अर्पण किया। कौत्स जी ने के उसमे से कुछ ही धन लिया एवं शेष धन जरूरत मंदों को दान करवा दिया एवं महाराज रघु को बतलाया कि अब यह स्थान स्वर्णखनी तीर्थ के नाम से जाना जाएगा।
मान्यता- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वैशाख शुक्ल द्वादशी एवं आश्विन शुक्ल दशमी को यंहा की यात्रा तथा स्नान,दान आदि करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
वर्तमान स्थिति- वर्तमान समय में कुण्ड की स्थिति दयनीय है। कुण्ड का स्वरूप अन्य कुण्डों की अपेक्षा सुंदर है चारों ओर पक्की सीढ़ियां हैं परंतु कुण्ड का जल अत्यंत दूषित है,कुण्ड के चारों ओर स्थानीय लोगों द्वारा गोबर-गंदगी फेंका जाता है।
स्थानीय लोगों की राय- स्थानीय जनों का कहना है यह कुण्ड नगर निगम के क्षेत्र में आता है एवं अयोध्या नगर के मुख्य क्षेत्र के समीप है फिर भी यह स्थान बदहाली एवं उपेक्षा का शिकार है। स्थानीय प्रशासन को शीघ्र ही इसके जीर्णोद्धार एवं रख रखाव की व्यवस्था करनी चाहिए।
स्वटिप्पणी- स्थानीय जनों से सहमत हूँ साथ ही यंहा लगने वाले पौराणिक मेलों को पुनः स्थापित करने का प्रयास भी किया जाना चाहिए।