NIRMALI KUND (निर्मली कुण्ड -95)
January 31, 2022
SAROVAR (श्री सरोवर (लक्ष्मीकुण्ड)-93)
January 31, 2022

SHITALADEVI (शीतला देवी (बड़ी देवकाली)-94)

पता- यह स्थान अयोध्या नगर के लगभग सभी मार्गों से जुड़ा हुआ है। अयोध्या से फैजाबाद जाने वाले मार्ग पर बेनीगंज चौराहे से बांये ओर जाने वाली सड़क पर लगभग 1 किलोमीटर पर यह स्थान स्थित है। शिलालेख- मंदिर के मुख्य द्वारा से प्रवेश करने पर दाहिनी ओर एक प्राचीन कुआँ है उसी कुएं से सटा कर शिलालेख स्थापित है। किवदंती- श्री शीतला माता के इस मंदिर के स्थापना एवं विषय पर अनेक मत हैं। कुछ कथाओं के अनुसार एक बार राजा रघु को स्वप्न दिखा की महाशतचंडी यज्ञ करो, तभी युद्ध में विजयी होगे। इस पर राजा रघु ने यज्ञ किया और युद्ध जीता। फिर उन्होंने यंहा श्री शीतला माता का मंदिर बनवाया।दूसरी कथा के अनुसार स्वयं राजा विक्रमादित्य ने अयोध्या बसाने के उपरान्त एक ही शिलापट पर त्रिदेवियों की स्थापना करते हुए इस मंदिर का निर्माण कराया। मगर इन सब सबसे प्रमाणिक और जन जन व्याप्त कथा के अनुसार यंहा स्थापित त्रिदेवियां भगवान श्री रामचन्द्र की कुल देवी हैं। श्री राम की कुलदेवियों में चार शक्तियों के नाम इस प्रकार हैं श्री शीतला देवी (बड़ी देवकाली) को छोड़कर तीन अन्य देवियों में श्री चुटकी देवी,श्री वन्दी देवी (जलपा) और लोटनी भवानी हैं। मान्यता- वर्तमान समय में बड़ी देवकाली के परम्परा में विशेष पर्व की तिथियाँ शारदीय तथा वासन्तिक नवरात्रि के नौ दिन हैं। इनके अतिरिक्त श्रावण तथा आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष के पन्द्रह दिन बड़े मेले का दिन होता है।यंहा नित्य दर्शन पूजन के लिए सोमवार एवं शुक्रवार का दिन विशेष है जिसमे सोमवार का दिन मुख्य है। स्थानीय जनों में माँ बड़ी देवकाली के प्रति अटूट भक्ति है। नगरवासी माता शीतला को कुल देवी मानकर यंहा आपने बच्चों का मुंडन संस्कार भी कराते हैं। इसी के साथ ही विवाह के बाद नवदंपत्ति का जोड़ों के दर्शन की विशेष मान्यता है। वर्तमान स्थिति- वर्तमान में यह मंदिर दियरा रियासत की सरवराहकारी के अंतर्गत आता है, जो कभी उन्हें अंग्रेजी के समय में प्राप्त हुई थी। मंदिर के वर्तमान व्यवस्थापकों में से हरीश कुमार पाठक जी ने यह बताया की इस मंदिर सरवराहकारी राजा दियरा को सन 1893ई. में मिली थी एवं लगभग नौ पीढ़ियों से हरीश पाठक जी का परिवार मंदिर की व्यवस्था एवं पूजा-पाठ का कार्य कर रहा है। मंदिर के मुख्य द्वार का स्थापत्य अत्यन्त मनोहरी है। द्वार से भीतर प्रवेश करने पर दाहिनी ओर शितिला माता का गर्भगृह मिलता है,जिसके भीतर शीतला देवी के रूप में त्रिदेवियाँ एक प्रस्तर पट्टिका पर उत्कीर्ण हैं। जो महाकाली,महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में हैं। इसी के समीप और कई छोटे-बड़े प्राचीन मंदिर हैं जिसमें काल-भैरव का मंदिर, गौरी जी का मंदिर और बाबा दूधनाथ का शिवलिंग विशेष हैं। पाठक परिवार के अनुसार इस मंदिर परिसर का जीर्णोधार बाबू इन्द्र बहादुर सिंह के पुत्र श्री उदय प्रताप सिंह जी द्वारा कराया गया यह जीर्णोधार कार्य सन 1975 से 1978 तक चला। प्रताप सिंह के नाम से प्रसिद्ध श्री उदय प्रताप सिंह की आस्था इस मंदिर में अटूट थी और उन्ही के जतन से इस मंदिर का वर्तमान स्वरुप कुछ और अधिक सुन्दर होकर हमें प्राप्त हुआ है। इस मंदिर के मुख्य गर्भगृह से सन 2012 में त्रिदेवियों का अर्चा विग्रह चोरी हो गया था।पुलिस प्रशासन की सक्रियता से बाद में वह प्राप्त हुई और पुनः गर्भगृह में प्रतिष्ठित किया गया। स्थानीय लोगों की राय- स्थानीय जन मंदिर के वर्तमान स्थित से संतुष्ट हैं।

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