SWARGDWAR (स्वर्गद्वार-79)
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PAAPMOCHAN GHAT (पापमोचन-77)
February 1, 2022

LAKSHMAN GHAT (लक्ष्मण घाट-78)

पता- यह स्थान सरयू तट पर राम की पैड़ी के मुहाने पर स्थित है। शिलालेख- शिलालेख मंदिर के सामने लगा हुआ है। किवदंती- श्री अयोध्या महात्यम के अनुसार एक बार महाराज श्री राम काल के साथ बैठकर एकान्त में मन्त्रणा कर रहे थे। इस मन्त्रणा के प्रारम्भ होने से पूर्व एक प्रतिज्ञा दोनों के मध्य हुई कि जो हम दोनों के मन्त्रणा के मध्य आ जावे उसे आप शीघ्र ही छोड़ देवें। काल से मन्त्रणा करते समय लक्ष्मण जी वंहा के द्वारपाल थे। उसी समय तपोमूर्ति श्री दुर्वाशा जी आ गए वे भुख से व्याकुल होकर लक्ष्मण जी से कहते हैं हे सुमित्रानंदन श्री राम जी को शीघ्र मेरे आने की सूचना दो और तुम मेरी इस आज्ञा का उलंघन नहीं कर सकते। श्री लक्ष्मण जी ने दुर्वाशा जी के क्रोधित होने की संभावना को देखते हुए शीघ्र ही श्री राम और काल के पास जा कर दर्शन के लिए आये हुए दुर्वाशा जी के आने का समाचार निवेदन किया। श्री राम जी ने काल के साथ मन्त्रणा को समाप्त कर दुर्वाशा जी के पास गए एवं आदर पूर्वक उनसे भेंट कर के उन्हें भोजन कराकर प्रेमपूर्वक विदा किया। श्री राम जी ने सत्य एवं वचन पर बने रहने के लिए उसी क्षण लक्ष्मण जी को त्याग दिया। श्री लक्ष्मण जी ने भी वीरतापूर्वक बड़े भाई के आदेशों का पालन करते हुए सरयू तट पर आ गए और वंही पर मन को शांतकर चिदात्मा में स्थापित कर दिया। उसी समय उनके पीछे हजारों फनों से सुशोभित सर्पराज पृथ्वी के भीतर से प्रकट हुए। सहस्त्र फनों से सुशोभित सर्पराज जब पृथ्वी से प्रकट हुए तभी से यह तीर्थ सहस्त्रधारा नामक महातीर्थ प्रसिद्ध हो गया। इस सहस्त्रधारा तीर्थ का प्रसार 25 धनुष लम्बाई के बराबर है। मान्यता- मान्यता अनुसार इस तीर्थ पर वैशाख मास में विधिपूर्वक स्नान पूजन करने से मनुष्य जन्ममरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। वर्तमान स्थिति- स्थानीय मान्यताओं के अनुसार पूरे विश्व में शेषरूप में यह लक्ष्मण जी का अकेला मंदिर है। मंदिर के महंत अशोकदास जी बताते हैं, इस मंदिर में आकर कभी कोई झूठ नहीं बोलता, इसी कारण कई बार यंहा वादविवाद सुलझाने के लिए लोग आते हैं। यंहा दर्शन मात्र से कालसर्प योग के सभी दोष से मुक्ति मिलती है। सावन में नाग पंचमी के दिन यंहा विशेष पूजा होती है। इन दिन यंहा भव्य फूल बंगला झाँकी होती है। वर्तमान समय में मंदिर जर्जर हालत में है। मंदिर को शीघ्र ही जीर्णोद्धार की आवश्यकता है। स्थानीय लोगों की राय- स्थानीय जनों का कहना है कि इतना सिद्ध स्थान होने के बाद भी जानकारी के अभाव में इस स्थान पर दर्शन करने वालों की संख्या बहुत कम है। स्वटिप्पणी- स्थान के जीर्णोद्धार के साथ प्रचार प्रसार की भी आवश्यकता है।

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