SHRI KESHARIJI (श्री केसरी-43)
February 1, 2022
MAIND (मैन्द-41)
February 1, 2022

JAMWANT JI (जामवंत जी-42)

पता- यह स्थान अयोध्या हनुमान गढ़ी के सामने राजद्वार के बगल से जाने वाले मार्ग पर 200 मीटर आगे स्थित है। शिलालेख- शिलालेख मंदिर के बाहर नाली पर लगा हुआ है। किवदंती- धर्मग्रंथों में जामवंत जी को अग्निपुत्र कहा गया है। पुराणों में कहा गया है कि जामवंत जी की मानसिक शक्ति एवं स्मरण शक्ति बहुत अधिक थी। उन्हें सम्पूर्ण वेद एवं उपनिषद कंठस्थ थे। जामवंत जी सदैव कुछ न कुछ शिक्षा ग्रहण करते रहते थे। उनके स्वाध्याय के कारण ही उन्हें लम्बी आयु का वरदान प्राप्त था। ग्रन्थों में कहा जाता है हनुमान जी एवं परशुराम जी के बाद जामवंत जी ही ऐसे हैं जिनका तीनों युगों में होने का वर्णन मिलता है। ग्रंथो के विवरण के अनुसार जामवंत जी को हनुमान जी और परशुराम जी से बड़ा माना गया है। कहा जाता है जामवंत जी राजा बलि के काल के मान्यताओं के अनुसार जामवंत जी ने भगवान विष्णु के वामन अवतार को अपनी आँखों से देखा था। मान्यता- जामवंत जी को रीछपति भी कहा जाता है। इन्होंने ही समय आने पर हनुमान जी को उनकी शक्ति का स्मरण कराया था। रामचरितमानस में इसका वर्णन मिलता है- कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना॥ पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना॥2॥ रीछपति जामवंत जी ने श्री हनुमान जी से कहा- हे हनुमान्‌! हे बलवान्‌! सुनो, तुमने यह क्या चुप साध रखी है? तुम पवन के पुत्र हो और बल में पवन के समान हो। तुम बुद्धि-विवेक और विज्ञान की खान हो। वर्तमान स्थिति- वर्तमान समय में यह स्थान जामवंत किला के रूप में जाना जाता है। मंदिर के गर्भगृह में रामदरबार स्थापित है। जामवंत जी मंदिर के मुख्यद्वार के ऊपर विराजमान हैं। मंदिर पर लगे एक शिलालेख के अनुसार इस मंदिर का पुनःनिर्माण सन 1895 में कराया गया है। स्थानीय लोगों की राय- स्थानीय जनों का कहना है की मंदिर के प्रचार प्रसार की आवश्यकता है। स्वटिप्पणी- सर्वप्रथम मंदिर के बाहर लगे शिलालेख को नाली पर से स्थानांतरित किया जाना चाहिए।

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