VARAAHKSHETRA (वाराह क्षेत्र -139)
January 28, 2022GHRITACHI KUND
January 28, 2022
पता- यह स्थान गोण्डा जिले के परसपुर ब्लाक के अंतर्गत आने वाले पसका ग्राम में स्थित है।
शिलालेख- यह शिलालेख कई वर्षों पूर्व तोड़ कर लुप्त कर दिया गया था। अत्यधिक प्रयास के शिलालेख का निचला खंडित भाग प्राप्त हुआ है। ऊपरी भाग की तलाश जारी है।
किवदंती- अयोध्या के चौरासी कोस क्षेत्र के चार संगम में से एक है श्री सरयू-घाघरा संगम यह सबसे बड़ा संगम है। इसकी महिमा का वर्णन स्कन्द पुराण व रुद्रयामल जैसे ग्रंथो में वर्णित है। इस स्थान पर श्रद्धालु पौष मास में कल्पवास करते हैं। पूरे पौष मास भर यंहा विशाल मेला लगता है। यह नजारा कुंभ के जैसा प्रतीत होता है। पौष मास की शुक्ल चतुर्दशी को व्रती होकर रात्रि जागरण करके प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में संगम में स्थान करने से विशेष कृपा होती है।
मान्यता- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी क्षेत्र में श्री रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी के गुरु श्री नरहरि दास जी का आश्रम था। इसी स्थान पर तुलसीदास जी ने अपने गुरु से रामचरितमानस का बारम्बार श्रवण किया था। रामचरितमानस के बालकाण्ड में तुलसीदास जी लिखते हैं
मैं पुनि निज गुर सन सुनी कथा सो सूकरखेत।
समुझी नहिं तसि बालपन तब अति रहेउँ अचेत॥
कहत कथा इतिहास बहु आये सूकरखेत।
संगम सरयू-घाघरा संत जनम सुख देत।।
वर्तमान स्थिति- वर्तमान समय में तटबंधों द्वारा घाघरा नदी की धारा मोड़ दिए जाने के कारण यंहा संगम क्षेत्र अब संगम के स्वरूप में नहीं रह गया है।
स्थानीय लोगों की राय- स्थानीय जनों का कहना कि यंहा चौरासी कोसी परिक्रमा के सत्रहवें दिन का विश्राम होता है। इस कारण यंहा परिक्रमार्थियों एवं पौष मास के कल्पवासियों के लिए यंहा समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए।
स्वटिप्पणी- स्थानीय जनों से सहमत एवं संगम चित्र के अलावा चारऔर चित्र लगाए गए हैं। जो संगम के समीप नरहरि दास जी के आश्रम के हैं। इस चित्र में दिख रही वस्तुवें मंदिर के पुजारी सूर्यमणि जी एवं स्थनीय जनों के अनुसार नरहरि दास जी के काल की हैं। जिसमें नरहरि दास जी शंख, तुलसीदास जी का काष्ठ कमण्डल एवं तुलसीदास जी द्वारा हस्त लिखित रामचरितमानस हैं।