SITAKOOP (सीताकूप-3)
February 2, 2022श्री राम झील
May 11, 2022
पता- यह स्थान दशरथ महल से रामजन्मभूमि जाने वाले मार्ग पर लगभग 200 मीटर आगे बायीं ओर स्थित है।
शिलालेख - यह रामगुलेला मंदिर के मुख्य द्वार के पश्चिम में है
किवदंती- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लोमश मुनि अत्यंत ज्ञानवान ऋषि थे। वह अपने काल में तीनों लोकों में चिरजीवी लोगों में सर्वश्रेष्ठ थे। एक बार इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इनसे वरदान मांगने को कहा। जब मुनिश्रेष्ठ लोमश जी ने अमरत्व एवं अजरत्व की याचना की।
तब शंकर जी मुस्कुराते हुए बोले- जो नाम और रूप धारण करता है ऐसा देहधारी प्राणी सर्वथा अजर-अमर नहीं हो सकता। इस लिए तुम भी अपने जीवन की कोई सीमा निश्चित करो।
तब लोमश जी ने बड़े चतुराई पूर्वक कहा मेरे शरीर के अंदर जितने रोम हैं वे क्रमशः एक एक कर के जब झड़ जायें तब मेरी मृत्यु हो और मेरा एक रोम एक कल्प के अंत हो जाने पर झड़े। तब भगवान शिव ने तथास्तु कह दिया। रामचरितमानस के तो शिवजी के बाद श्री लोमश मुनि जी ही वक्ताओं में श्रेष्ठ माने जाते हैं। क्योंकि शिवजी ने सर्वप्रथम स्वरचित राम कथा को अपने प्रिय शिष्य लोमश जी को ही प्रदान किया था।
वह लिखते हैं-
“रामचरित सर गुप्त सुहावा । शम्भूप्रसाद तात मैं पावा।।”
मान्यता- मान्यताओं के अनुसार महाभारत वनपर्व में इन्होंने धर्मराज युधिष्ठिर को कथा सुनाई थी। जब अर्जुन दिव्यास्त्रों की शिक्षा हेतु स्वर्ग लोग गए थे तब वंहा देवराज इंद्र की सभा में लोमश जी मिले वह इन्द्र से मिलने आये थे। तब इन्द्र ने लोमश जी से प्राथना की थी कि अर्जुन के बिना धर्मराज युधिष्ठिर अत्यंत शोकातुर रहते हैं उन्हें तीर्थ यात्रा करा कर उनका शोक दूर करिये।
तीर्थों का भ्रमण कराते हुए श्री अयोध्या धाम के श्री गोप्रतार घाट पर ठहरे थे, और यंही राम कथा सुनाई। पद्मपुराण में विचित्र रूप से राम कथा का प्रवचन किया जाना मिलता है।
वर्तमान स्थिति- वर्तमान में मंदिर की स्थिति उत्कृष्ट है। मंदिर के गर्भ गृह में राम दरबार के साथ लोमेश मुनि जी की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है
स्थानीय लोगों की राय- मन्दिर में कुछ स्थानीय साधुओं से बात करने से पता चला की जन्मभूमि के इतना पास होने के बाद भी यंहा दर्शनार्थियों की संख्या बहुत कम है जिसका मुख्य कारण लोगों में जानकारी का आभाव है
स्वटिप्पणी- स्थानीय लोगों की राय से सहमत हूँ