The Kanak Bhawan is established towards the northeastern corner of the Ram Janmabhoomi in Tulsi Nagar. Constructed in 1891, this temple is also known as Sone-ka-Ghar. It is a holy site dedicated to the Hindu deity Lord Rama and his wife, Goddess Sita.
Kanak Bhawan, also meaning Golden Palace, cites three golden-crowned idols of the two gods under a silver roof in the sanctum santorum (Garbagriha). It is believed that this shrine was gifted to Rama and Sita by the former's stepmother, Kaikeyi.
Upon designed renovation during Vikramaditya's reign, the present site was further entirely revamped by Vrish Bhanu Kunwari. This Bundela-styled temple is currently managed by the Sri Vrishbhan Dharma Setu Trust Private Limited
किवदंती- जब जानकी जी विवाह के पश्चात अयोध्या आईं, तो महारानी कैकेयी ने कनक निर्मित अपना महल जानकी जी को प्रथम भेंट स्वरुप प्रदान किया। प्रचलित कथाओं के अनुसार यह भवन सम्पूर्ण अयोध्या क्षेत्र के सबसे भव्य एवं सुन्दर महलों में से एक था। यह पूर्ण रूप से कनक यानि सोने से बना था। इसी कारण इसे कनक भवन कहा जाता रहा है।
मान्यता- कनक भवन मंदिर परिसर में ओरछा राजघराने द्वारा लगवाए गए एक शिलालेख के अनुसार, कनक भवन मंदिर का कई बार जीर्णोद्धार कार्य किया गया। सर्वप्रथम कनक भवन त्रेतायुग में भगवान श्री राम एवं माता सीता का रहने का सोने से मढ़ा हुआ महल था। द्वापर युग के शुरू में भगवान राम के जेष्ठ पुत्र महाराज कुश ने इसे अपने पिताश्री की स्मृति में पुनः निर्माण कराया। द्वापर युग के मध्य में महाराज ऋषभदेव ने इसे फिर से बनवाया, द्वापर के अंत में भगवान श्रीकृष्ण यहां पधारे थे। कलयुग में सर्वप्रथम महाराज विक्रमादित्य ने इसका निर्माण युधिष्ठिर सम्वत् 2431 में किया, फिर इसका विस्तार एवं मरम्मत महाराज समुद्रगुप्त ने विक्रम सम्वत् 444 में किया। दुर्भाग्यवश विक्रम सम्वत् 1084 में एस. सालारजंग ने इसे ध्वस्त कर दिया। वर्तमान भव्य कनक भवन मंदिर का निर्माण एवं प्राण प्रतिष्ठा ओरछा राज्य के नरेश एच. एच. महाराज सवाई महेंद्र सर प्रताप सिंह जू देव, जी.सी.एस.आई., जी.सी.आई.ई. की धर्मपत्नी महारानी वृषभान कुवँर ने विक्रम सम्वत् 1948 (सन 1891), बैशाख सुदी 6, गुरु पुष्य नक्षत्र में करवाया। मंदिर के गर्भ गृह में भगवान श्री राम एवं माता सीता की 3 जोड़ी मूर्तियां हैं। दर्शनार्थी भक्तों के दाहिने हाथ की तरफ पहली जोड़ी मूर्तियां महारानी वृषभान कुवँर द्वारा स्थापित की गई हैं। दर्शनार्थी के बाएं हाथ की तरफ वाली दूसरी जोड़ी मूर्तियां महाराज विक्रमादित्य के द्वारा स्थापित प्राचीन मंदिर की हैं और इसके नीचे वाली तीसरी जोड़ी मूर्तियां भगवान श्री कृष्ण द्वारा प्रतिष्ठित की गई थीं।