DURGESHWAR (दुर्गेश्वर-27)
February 2, 2022GAVAAKSH (गवाक्ष-25)
February 2, 2022
पता- टेढ़ी बाजार चौराहे से कटरा मोहल्ले की ओर जाने वाली सड़क पर लगभग 1.5 किलोमीटर आगे जाने पर बायीं ओर ब्रह्मकुण्ड का रास्ता मुड़ा है और दाहिनी ओर एक बड़ा सा पाकड़ का वृक्ष है। (वर्तमान समय में यह स्थान रामजन्मभूमि परिसर में है।)
शिलालेख- उसी पाकड़ के वृक्ष के नीचे दीवाल से सटा कर यह शिलालेख लगा हुआ है।
किवदंती- अयोध्या महात्यम के अनुसार रामदुर्ग के रक्षकों में से दधिवक्र जी भी एक थे। अयोध्या महात्यम में वर्णित है कि दधिवक्र जी रामदुर्ग के पश्चिमी द्वार के रक्षक थे।
मान्यता- रामचरितमानस में तुलसी दास जी द्वारा वानरवीरों के लिए लिखे गए एक दोहे में दधिमुख का नाम भी आता है।
द्विबिद मयंद नील नल अंगद गद बिकटासि।
दधिमुख केहरि निसठ सठ जामवंत बलरासि॥54॥
इस दोहे के अनुसार द्विविद, मयंद, नील, नल, अंगद, गद, विकटास्य, दधिमुख, केसरी, निशठ, शठ और जाम्बवान ये सभी वानरराज इतने वीर एवं शक्तिशाली हैं की इन्हें बल की राशि की संज्ञा दी जाती है।
वाल्मीकि रामायण में इन सभी वानर यूथपतियों का विस्तृत वर्णन मिलता है।
वर्तमान स्थिति- वर्तमान समय में यह स्थान रामजन्मभूमि परिसर में है।
स्थानीय लोगों की राय- स्थानीय जनों को इस स्थान के विषय में कोई जानकारी नहीं है।
स्वटिप्पणी- जन्मभूमि परिसर में प्रवेश की अनुमति न होने के कारण कोई भी टिप्पणी सम्भव नहीं है।