परिक्रमा-

हिन्दुधर्म में परिक्रमा का एक विशेष महत्व है। लोग धार्मिक स्थलों के चारों ओर चल कर इसे पूरा करते हैं। इसी क्रम में हिन्दू धर्म ग्रन्थों में कुछ विशेष धार्मिक नगरियों का उल्लेख है और हिन्दू जनमानस में इन नगरों का विशेष महत्व है। इसी कारण इन नगरों में पड़ने वाले पूजा स्थलों का महत्व भी अधिक है। श्रद्धलुओं द्वारा एक एक मंदिरों एवं धार्मिक स्थलों की परिक्रमा सम्भव नहीं हो सकती, इसी कारण प्राचीन काल से उस धार्मिक क्षेत्रों में परिक्रमा की जाती है। इस प्रकार परिक्रमा करने पर उस परिक्रमा परिधि में पड़ने वाले सभी पूजा स्थलों की परिक्रमा मानी जाती है। अयोध्या में मुख्यता चार प्रकार की परिक्रमा की जाती है अंतरगढ़ी परिक्रमा, पंचकोसी परिक्रमा, चौदह कोसी परिक्रमा, चौरासी कोसी परिक्रमा। सरकार द्वारा इन सभी परिक्रमा मार्गों पर परिक्रमा पथ बनवाये गए हैं। उस पथ के किनारे वृक्षारोपण, परिक्रमा करने वाले श्रद्धालुओं के लिए विश्राम स्टैंड आदि। उन मार्गों का नामकरण भी परिक्रमा के नाम पर ही है। सरकार समय समय कर इस परिक्रमा पथों का जीर्णोद्धार करवाती रहती है। जिससे श्रद्धालुओं को परिक्रमा के दौरान किसी प्रकार की असुविधा न हो। यह सभी परिक्रमा अयोध्या में एक मेले की तरह मनाई जाती हैं। इसके दौरान प्रशासन द्वारा सुरक्षा के साथ साथ श्रद्धालुओं के सुविधाओं हेतु सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है। सरकार के साथ-साथ पूरे परिक्रमा पथ के दोनों ओर स्थानीय जनों एवं अनेक संस्थाओं द्वारा सभी प्रकार के स्टॉल लगाए जाते हैं। जिसमें उपचार हेतु मेडिकल कैम्प,चाय,भोजन,पेयजल आदि सभी प्रकार की सेवा स्थानीय लोगों द्वारा श्रद्धा भाव से दी जाती है।


रामकोट परिक्रमा-

अयोध्या में मुख्य पूजा स्थान रामकोट के आसपास हैं। इन सभी स्थानों की एक साथ एक दिवसीय परिक्रमा होती है। यह रामकोट परिक्रमा कहलाती है। यह परिक्रमा प्रायः सरयू में स्थान कर के नागेश्वरनाथ मंदिर से प्रारंभ हो कर रामघाट,सीताकुण्ड, मणिपर्वत, और ब्रह्मकुण्ड होते हुए कनक भवन पर समाप्त होती है।

पंचकोसी परिक्रमा -

यह परिक्रमा लगभग 10 किलोमीटर की होती है। यह परिक्रमा प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की एकादशी को की जाती है। सरकार द्वारा इस परिक्रमा मार्ग पर पथ बना हुआ है। इस मार्ग की परिवृत लगभग पाँच कोस की है इसी लिए इसे पंचकोसी परिक्रमा कहते हैं। कार्तिक शुक्ल एकादशी को प्रातः सरयू स्नान कर के श्रद्धालु परिक्रमा प्रारंभ करते हैं। परिक्रमा प्रारम्भ करने के कई स्थान है। मुख्यता लोग नया घाट या वंदी देवी (जालपा माता) मंदिर से पंचकोसी परिक्रमा प्रारम्भ करते हैं और उसी स्थान पर पहुँच कर परिक्रमा समाप्त होती है। इस परिक्रमा मार्ग में मुख्य रूप से रामघाट,

चौदह कोसी परिक्रमा -

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी जिसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है। इसी तिथि को चौदह कोसी परिक्रमा की जाती है। सरकार द्वारा चौदह कोसी परिक्रमा मार्ग पर भी पथ का निर्माण कराया गया है। इस परिक्रमा की परिवृत चौदह कोस यानी 42किलोमीटर होती है इसी लिए इसे चौदह कोसी परिक्रमा कहते हैं। यह परिक्रमा प्रातः काल सरयू स्नान के बाद प्रभु श्री राम का स्मरण कर के प्रारम्भ की जाती है। चौदह कोसी परिक्रमा मार्ग पर मुख्य रूप से वैतरणी कुण्ड,सूर्य कुण्ड,रति कुण्ड,कुसुमायुध कुण्ड, दुर्गा कुण्ड, जनकौरा(जनौरा) स्थित मंत्रेश्वर महादेव एवं गिरजा कुण्ड,निर्मली कुण्ड,गुप्तार घाट पर गुप्त हरि एवं चक्र हरि जी का दर्शन किया जाता है।इसके बाद यम स्थल,विध्नेश्वर नाथ,चक्रतीर्थ,ऋणमोचन,पापमोचन,लक्ष्मण घाट आदि स्थान के दर्शन पूजन करते हुए परिक्रमा राम घाट पर आ कर समाप्त होती है।

चौरासी कोसी परिक्रमा-

अयोध्या के समीप बस्ती जिले में एक मखौड़ा नामक ग्राम है इसी ग्राम में मनोरमा नदी के तट पर मख क्षेत्र नामक तीर्थ स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी तीर्थ स्थल पर राजा दशरथ द्वारा पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया गया था। अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा आज भी इसी तीर्थ स्थल से प्रारम्भ होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति 84 कोस की यात्रा को विधि पूर्वक पूरा करता है उसे 84 लाख योनियों में जन्म मरण के बंधन से मुक्ति मिलती है। लोक मान्यता में प्रभु श्री राम की राजधानी अयोध्या का विस्तार इसी 84 कोसी परिक्रमा मार्ग के भीतर था। जिसकी यात्रा करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यात्रा प्रत्येक वर्ष वर्ष वैशाख कृष्ण प्रतिपदा को मखौड़ा धाम से प्रारम्भ होती है। चौरासी कोसी परिक्रमा मार्ग में अवध क्षेत्र के 6 जनपद आते हैं जिसमें अयोध्या,अम्बेडकर नगर,बाराबंकी, गोण्डा एवं बस्ती है। 84 कोस यानी (252किलोमीटर) की यह यात्रा 24 दिवसीय होती है। इस यात्रा को श्रदालु आपने-आपने संकल्प अनुसार पूरा करते हैं,कुछ श्रद्धालु ट्रैक्टर-ट्राली,मोटरसाइकिल, चारपहिया वाहन आदि से भी यात्रा को पूरा करते हैं,मगर अधिकांश जन इस यात्रा को पैदल ही चल कर पूरा करते हैं। यात्रा वैशाख कृष्ण प्रतिपदा को बस्ती के मखौड़ा धाम से प्रारम्भ होकर 24 दिवस बाद अयोध्या,अम्बेडकर नगर, बाराबंकी, गोण्डा होते हुए जानकी नवमी को पुनः मखौड़ा धाम पर समाप्त होती है।

 
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