AGNI KUND (अग्नि कुण्ड-53)
February 1, 2022ASHOKA VATIKA (अशोकवाटिका-51)
February 1, 2022
शिलालेख- शिलालेख कुण्ड के तट पर झाड़ियों के बीच लगा हुआ है।
पता- यह नगर निगम के सीताकुण्ड वार्ड में स्थित है।
किवदंती- अयोध्या महात्यम के अनुसार श्री राम जी की अशोक वाटिका के वर्णन में कहा गया है कि उस काल में इस वाटिका के समान कोई और वाटिका नहीं थी। इस वाटिका में चन्दन, अगर,सभी ऋतुओं में फल देने वाले वृक्ष थे। वाटिका के चारों ओर देवदारु वृक्षों के वन सुशोभित होते थे। चम्पा,अगर,महुआ,कटहल,असम नामक वृक्ष वाटिका की विशेष शोभा को बढ़ाते थे। इसी के मध्य धूम रहित अग्नि के समान कान्त वाले पारिजात, कदम्ब, नागवृक्ष,मन्दार,केलों का समूह,जामुन,अनार,कोविदार आदि वृक्षों के फल एवं सुगन्ध वाटिका और दिव्य रूप में दिखाई देती थी। उस काल में जिस प्रकार इन्द्र देव का नंदनवन, कुबेर का चैत्ररथवन था उसी प्रकार श्री राम चन्द्र जी ने इस अशोक वाटिका की रचना की थी।
इसी वाटिका में माता सीता द्वारा स्थापित एक कुंड भी है जो सीताकुण्ड के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह कुण्ड महाफलों के देने में नव निधियों के समान है। यंहा की वार्षिक यात्रा अगहन बदी चतुर्दशी को होती है। इस तिथि को यंहा विधि पूर्वक स्नान-पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
मान्यता- मान्यताओं के अनुसार चैत्र मास में होने वाली चौरासी कोसी परिक्रमा इसी कुण्ड पर आ कर समाप्त होती है। चौरासी कोसी परिक्रमा प्रभु श्री राम के जन्म से प्रारंभ हो कर माता सीता के जन्म दिन जानकी नवमी को समाप्त होती है। इस दिन इसी कुण्ड पर रामार्चा यज्ञ एवं विशाल भंडारे का आयोजन होता।
वर्तमान स्थिति- वर्तमान समय में कुण्ड की स्थिति अत्यंत दयनीय है कुण्ड का जल अत्यधिक दूषित है। कुण्ड के तट पर एक प्राचीन रामजानकी हनुमान मंदिर भी स्थित है।
स्थानीय लोगों की राय- स्थानीय लोगों का कहना है की नगर निगम में जिस स्थान के नाम से एक वार्ड हो उस वार्ड का ही यह हाल सोचनीय है। इस लिए प्रशासन को शीघ्र इसका सुंदरीकरण कराना चाहिए।
स्वटिप्पणी- स्थानीय जनों से सहमत