SIDDH PEETH (सिद्ध पीठ-56)
February 1, 2022VIDYA KUND (विद्या कुण्ड-54)
February 1, 2022
पता- यह स्थान विद्याकुण्ड के दक्षिणी तट पर स्थित है।
शिलालेख- शिलालेख कुण्ड के दक्षिणी तट पर विद्यादेवी के मंदिर की दीवार से सटा कर लगा हुआ है।
किवदंती- अयोध्या महात्यम के अनुसार विद्याकुण्ड में स्नान के पश्चात विद्यादेवी का दर्शन पूजन करना चाहिए। इस स्थान पर 'ॐ नमो महाविधायै' इस मंत्र के जाप के साथ पूजन करने से विद्या,बुद्धि,ऐश्वर्य में वृद्धि होती है।
मान्यता- मंदिर के पुजारी परमात्मा दास जी बताते हैं, त्रेता युग में इस मंदिर की स्थापना राजा इक्ष्वाकु के द्वारा की गई थी। उनके कुल गुरु वशिष्ठ जी इक्ष्वाकु वंश के सभी राजाओं के बाल्यकाल में उन्हें लेकर इसी स्थान पर आते थे, एवं विद्यादेवी के मंदिर में सर्वप्रथम अक्षर का उच्चारण करवाते थे। पुजारी जी बताते हैं आज भी दूर दूर से लोग अपने बच्चों का विद्यालय में दाखिला करवाने से पूर्व यंहा ला कर विद्यादेवी के दर्शन करवाते हैं। कुछ श्रद्धालु अपने बच्चों का मुंडन संस्कार भी इसी स्थान पर करवाते हैं। पौराणिक ग्रंथों में इस स्थान की वार्षिक यात्रा अश्विन शुक्ल नवरात्रि की अष्टमी को होता है,परंतु पुजारी जी बताते हैं बसंत पंचमी को इस मंदिर में सर्वाधिक भीड़ होती है। प्रातः काल से देर रात्रि तक श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।
वर्तमान स्थिति- मंदिर के गर्भगृह में मुख्यरूप से माता सरस्वती विद्यादेवी के रूप में विराजमान हैं। मन्दिर में लगे एक शिलालेख के अनुसार इस स्थान का जीर्णोद्धार कार्य 2008 में कराया गया है। गर्भगृह में ही माता विद्यादेवी के बायीं ओर एक अति प्राचीन शिलाखंड अवशेष रखा हुआ है। पुजारी जी का कहना है कि यह सैकड़ों वर्ष पुराना है। पुरातत्व विभाग ने भी इसकी पुष्टि की है।
स्थानीय लोगों की राय- स्थानीय जनों का कहना है पूरे अयोध्या में यह सरस्वती जी का सबसे प्राचीन मंदिर है इस लिए इस स्थान के पौराणिक महत्व एवं प्राचीनता का विशेष रूप से प्रचार प्रसार किया जाना चाहिए। जिससे अधिक अधिक श्रद्धालु यंहा दर्शन लाभ पा सकें।
स्वटिप्पणी- मंदिर परिसर में स्वक्षता का अभाव है। स्थानीय प्रशासन एवं मन्दिर प्रशासन को स्वक्षता पर ध्यान देना चाहिए।